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जाने कैसा ये इश्क है...? भाग 24

रविश के पास पहुंच कर मैं वेटिंग रूम में पहुंच उसकी रिकॉर्डिंग खत्म होने का इंतजार करने लगा। जिसके लिए मुझे ज्यादा देर इंतजार नही करना पड़ा। करीब दस मिनट बाद रविश वापस चला आया और मैं उसके पास बैठकर बातचीत करने लगा। रवीश को अपनी परेशानी बताते हुए मैंने कहा, 'सूजी नाम की एक प्रशंसक यहां इंडिया में आई है, वह लगातार मुझे चेज कर रही है। मुझे लग रहा है उसके साथ कुछ समस्या है, क्योंकि वो इतना मुझे चेज नही करती मैं एक बार उससे बात करना चाहता हूं लेकिन मुझे इसमे चित्रा की मदद की जरूरत है।' मैंने कहा और चुप हो गया।

रविश से कहा तो रविश की सवालो की झड़ी शुरू हो गयी। ऐसा नही था उसे मुझ पर भरोसा नही था, नही एक दोस्त की तरह वह मुझ पर भरोसा करता था लेकिन वह सवाल करने लगा क्युंकि वह मेरा जिगरी दोस्त भी तो था। इतने सालो से हम साथ थे तो भला क्यूं न वो मेरी फिक्र करता। किसी विदेशी लड़की के मामले मे मुझे उसकी वाइफ की हेल्फ चाहिये वह भी तब जब मैंने सिंगल फादर बनकर लाइफ गुजारने का फैसला किया था। ऐसे मे मेरे जरा से भी आड़े टेढे सवाल मन को उलझाने के लिये काफी थे। मैं समझ गया जब तक सारी बात नही बता देता तब तक वह मेरी मदद करने वाला नही है। मैंने सॉर्ट मे सारी बात समझाई और उसका रियेक्शन भी वैसा ही था जैसा मैंने सोच रखा था। 

वह शॉक्ड होते हुए मुझसे लड़ पड़ा था उसका लड़ना स्वाभाविक भी था। वह उठा और गुस्से मे मुझे मारने लग गया। मैंने भी अपना बचाव किया और उससे बचते हुए कमरे मे ही दौड़ने लगा। जो अक्सर मै मेरी अर्पिता के साथ किया करता था लेकिन फिर भी दोस्त की मार तो पहली बार थोड़ी सी खा ही ली। मेरी पगली के साथ प्रैक्टिस होने के कारण मै पहले से ही अभ्यस्त था सो वह मुझे पकड़ नही पाया और थककर बैठ गया। उसके बैठने के बाद मै भी उसके पास ही बैठ गया। वह हाँफ रहा था और हाँफते हुए बोला, “कमीने अभी भी बड़ी फुर्ती है तेरे अंदर कैसे इतना काम करने के बाद चालीस पर पहुंचने वाला है और लग नही रहा है बिल्कुल भी।”
अब मै क्या बोलता ये तो मेरी पगली है जो प्रैक्टिस कराती रहती है नही तो मेरी क्या मजाल मै ऐसा कर पाऊं। बस व्यायाम कहा और उससे आगे बातचीत शुरू करने लगा। रविश कहने लगा, “तेरा सोचना बिल्कुल सही है प्रशांत! उसने इतना कुछ किया है तो अकेले मिलना जरूरी नही है और मुझे ये समझ नही आ रहा है कि तुझे उसकी मदद करनी ही क्यूं है? जब वह इतना कुछ कर सकती है और अभिनव वह उसके साथ है फिर मुझे नही लगता कि तुझे उसकी मदद करनी चाहिये?”

मै समझ रहा था उसका ये जवाब क्यूं है ये लेकिन मै करूं भी तो क्या अगर सच मे उसकी कोई मजबूरी हुई तो मुश्किले आ ही सकती है अगर वह इसी तरह मेरे पीछे लगी रही तो मेरे साथ साथ मेरे अपनो पर भी मुश्किले आ सकती हैं। प्रीत और तानी वो उन तक पहुंच भी सकती है। हालांकि मै पूरी कोशिश करूंगा ऐसा न हो लेकिन मै रिस्क क्यूं लूं इस बात के लिये। उससे कहा “अगर ऐसा नही किया तो मेरा ही मन मुझे कचोटेगा मै मदद कर सकता था लेकिन मैंने सेल्फिश होकर नही की।” वो मान गया और चित्रा से खुद बात करने कहा उसने तो मै मेरे शो की रिकॉर्डिंग का समय जानकर वहाँ से निकल आया। रिकॉर्डिंग की जगह बड़ी सावधानी से गया लेकिन वहाँ भी सूजी मौजूद थी और इस बार वह थोड़ा परेशान दिखी मुझे। उसे देखकर भी मै इग्नोर करते हुए वहाँ से जाने लगा लेकिन कुछ कदम आगे चलने पर मेरे पास एक हल्का गुलाबी रंग का खत आकर गिरा। मैने वहाँ मौजूद गार्ड को उसे उठाने के लिए इशारा किया और जांच करा कर आनंद जी की टेबल पर पहुंचाने का कह वहाँ से आगे बढ गया। हालांकि उस वक्त मुझे ये अंदाजा तो हो गया था कि वह सूजी ने ही फेंका है वहाँ शायद वह मुझे देना चाहती होगी लेकिन मेरे एटिट्यूड की वजह से नही से पाई होगी मुझे। खैर जल्दबाजी का गुण तो मुझमे पहले भी नही था सो अब कहाँ से लाता। मै मेरी रिकॉर्डिंग मे व्यस्त हो गया। जो काफी देर तक चली। करीब चार घंटे बाद जब मै फ्री हुआ तब जाकर मुझे उस पर्चे का ध्यान आया और मै वहाँ से सीधा उसके पास बढ गया।

पर्चा मेरी टेबल पर रखा था। उसे उठाकर देखा वह हल्के गुलाबी रंग की चिठ्ठी के अंदर टूटी फूटी हिंदी मे कुछ लिखा गया था। उसे पढते हुए पता चला जो अर्पिता और मैंने सोचा था हकीकत लगभग वही ही थी। सूजी यहाँ इंडिया मे थी क्युंकि उसके इंलॉज यही इंडिया मे ही रहते थे। जो राजस्थान के अच्छे खासी फमिली से बीलोंग करते हैं। रजवाड़ो की फमिली मे वह विदेशन है और उसका बेबी यहीं है एक लड़की उसे नही लेने जा दे रही। वह उसे वापस ले जाना चाहती है। अभिनव उसकी मदद नही करना चाहता क्युंकि ये सब उसके ही इशारे से हो रहा है। उसे हेल्प चाहिये मेरी जिससे वह यहाँ से जा सके। उसे पढ समझ आया ये बेवजह का मसला भी है और नही भी। सूजी की हेल्प की तो क्या गारंटी है कि वह मेरा पीछा छोड़ देगी। उसे सुन समझ आ गया कि मेरा इसमे न पड़ना सही नही है। क्युकि तकलीफ तो हम दोनो की लगभग एक जैसी ही थी लेकिन मै मदद करूं भी तो कैसे?
लेकिन उसमे कितना सच लिखा है ये मुझे नही पता था। उसे पता करने का एक ही तरीका था उससे मुलाकात जो कि अकेले तो मै बिल्कुल नही करने वाला था। मैंने गार्ड को बुलाया और उससे उस खत के बारे मे पूछा तो गार्ड ने भी सेम वही बात बोली जो मै अनुमान लगा चुका था। उसे जाने का कह मै भी वहाँ से निकल आया। आज समय था सो पहले ऑफ्सियल प्लेस पर गया वहाँ से सावधानी से चेंज किया और पिछले दरवाजे से सीक्रेटली निकल गया। हर दिन मेरे वहाँ आने जाने का समय बिल्कुल अलग थलग होता था। और एक बार अंदर जाने के बाद मै किसी भी रूप मे केवल तब ही बाहर दिखता था जब मुझे कहीं आना जाना होता था। यहाँ तक की बालकनी भी इस्तेमाल नही करता था मैं।

मैं वहाँ से सीधे अपने फ्लैट पर पहुंचा वहाँ से बच्चो के स्कूल के लिये निकला और फिर वहाँ से बच्चो के स्कूल पहुंच कर उन्हे वापस ले आया। आते हुए बाहर लंच की फरमाइश की तो उनके साथ एक अच्छे रेस्टोरेंट मे जाकर बैठ गया। जहाँ मेरे ही गाये गाने स्लो वॉइस मे चल रहे थे।प्रिंसेस तो आदतन धीमे धीमे गुनगुनाने लगी और प्रीत खामोशी से फोन लेकर उसे शूट करने लगा।


***


रविश ने चित्रा से बात कर ली थी। आज सुबह जब मैं एक्सरसाइज कर के फ्री हुआ तब चित्रा ने मुझसे सपाट लहजे में पूछा था, "कब चलना है प्रशांत जी, मुझे बता दीजियेगा। मैं वहां पहले से मौजूद रहूंगी। क्योंकि अचानक कहीं पहुंचना खतरा भरा हो सकता है।"


उसे सुन मैंने हल्की सी मुस्कुराहट चेहरे पर रखी और कॉल कर बता दूंगा कह बच्चो के पास चला आया।


उन्हें स्कूल पहुंचा मैं वापस आया और फिर घर पर सबसे बात करने लगा। पता चला प्रेम भाई ने होस्टल तलाश लिया था। शिमला के फेमस बोर्डिंग स्कूल में भेजना तय किया उन्होंने। लेकिन शिमला नाम सुनकर ही मेरा मन खराब हो गया। ये वही जगह थी जहां मेरी अर्पिता मिली भी और हमेशा के लिए खोई भी। मैं मना तो नही कर पाया  बस मुस्कुरा कर रह गया। सभी बच्चों को भेजना था प्रीत और तानी का पूछा तो मैंने सोचूंगा, प्रिंसेस मान जाए तब कह बात घुमा दी। फोन रख घड़ी देखी और एक बार फिर शो के लिए निकल गया। आज रिकॉर्डिंग नही थी शो था मेरा। इसीलिए ज्यादा समय नही लगना था। मै शो में पहुंचा और हमेशा की तरह मेरी हमसफ़र के साथ शो अटैंड करने लगा। शो के बीच मे भी सूजी दिख गयी जो परेशान थी और किसी से फोन पर बात कर रही थी। इतनी भीड़ में भी वो अच्छे से सुन पा रही थी ये बात हैरत की थी। शो खत्म होने के बाद मैं मेरी अर्पिता के साथ ही मिस्टर आनंद के साथ था तभी गार्ड ने मुझे बताया बाहर सूजी नाम की प्रशंसक ज्यादा शोर मचा रही है। उसे सुन मैंने उससे कहा उससे कहा थोड़ा इंतजार करें मैं बात करता हूँ उनसे। आनंद जी भी नाम सुन कर गुस्साने लगे। मैंने कहा, " ये अपना ही देश है सर, यहां डरने की बात नही सम्हल कर तो विदेश में रहा जाता है घर मे नही। यहां मैं हैंडल कर लूंगा।"


मुझे सुन वे गुस्साते हुए बोलने लगे, "घर है तो क्या लापरवाह हों जाए। नही मिस्टर शान, घर मे भी सतर्कता जरूरी है और फिर ये मुम्बई है हवाओ में भी जादू है, बिखरते देर नही लगेगी। अर्पिता काफी देर से खामोश थी उन्हें सुन कर भी कुछ नही बोली बल्कि बाहर खड़ी सूजी पर नजर रखने लगी।


जी लेकिन ध्यान रखूंगा मैं, कहते हुए मैंने चित्रा को फोन किया जो मेरे ही फोन का इंतजार कर रही थी। उससे जल्द ही मेरे शो वाली जगह पर आने के लिए कहा जिसमे उसे समय नही लगना था क्योंकि बच्चो के स्कूल टाइम में वो अक्सर रवीश के साथ निकल आती थी। उसने पांच मिनट का कहा और कुछ ही देर में वो हमारे सामने थी। इस बार उसने सर से लेकर पैर तक खुद को गाउन से ढंक रखा था। मैंने गार्ड को सूजी को अंदर भेजने के लिए कहा वो कुछ ही देर में चली आई।


सूजी मेरे साथ आनंद जी को देख असहज होने लगी। उसने आनंद जी को वहां से भेजने के लिए मुझसे कहा तो आनंद जी वहां से उठ कर खिड़की वाले काउच पर जाकर बैठ गए और टेबल पर रखी मैगजीन के पन्ने पलटने लगे। सूजी ने सवालिया नजरे मेरी ओर दौड़ाई। मैने कहा, " तुम्हे कुछ बात करनी है तो स्पष्ट करो! मेरा और अपना दोनो के समय की कीमत समझो।"


"सूजी कहने लगी लेकिन कुछ बातें निजी होती है मिस्टर शान।" उसे सुन मैंने कठोरता से कह दिया, "निजी बातें जाकर अपनो से करो, मुझे किसी की निजता में कोई इंटरेस्ट नहीं। चित्रा के खांसने की आवाज सुनाई दी तो आनंद जी मैगजीन पकड़े ही पकड़े मुस्कुरा दिये।"


सूजी भुनभुनाते हुए कहने लगी, "जो कहना था कल कह दिया मिस्टर शान! आज कुछ नही कहना है मुझे। आप मेरी हेल्प कर दें। आपके जवाब की प्रतीक्षा रहेगी।" वह उठी और एक बार फिर अपना बैग मेरे पास टेबल पर छोड़ कर निकल गयी। उसे देख मन मे बस यही ख्याल आया मुझे इन सब से दूर रहना चाहिए। ये मदद एक बहाना है मकसद तो कुछ और ही असर दिखाने वाला है। एक बार फिर अपनी बेवकूफी और समझदारी दोनो पर ही गुस्सा आया मुझे। मैंने गार्ड को आवाज दी और टेबल पर रखे उस बैग की ओर इशारा करते हुए उसे ले जाने का इशारा कर दिया और आनंद जी को धन्यवाद कह चित्रा को साथ ले वहां से निकल आया।


रास्ते मे आते हुए चित्रा सवाल करते हुए कहने लगी, "वह झूठ तो नही बोल रही प्रशांत जी लेकिन उसकी हरकतें सामान्य नही है। उस बैग का वहां छोड़ा जाना नॉर्मल नही है।" मैंने कहा, "हो सकता है, मुझे भी ऐसा ही लगा। बात खत्म की और गाड़ी मे बैठा अपना गेटअप बदलने लगा। अचानक ही मिरर से पीछे नजर पड़ी देखा एक गाड़ी मेरे पीछे आ रही थी।


***


उसे देख एहसास हुआ वाकई मे ये कुछ नॉर्मल नही है। मैने गाड़ी मे ही चित्रा से कहा तुम यही पास ही उतर जाओ मुझे थोड़ा काम और है उसे खत्म कर घर पहुंचता हूं। चित्रा ने ठीक है कहा और मैंने ड्राइवर से गाड़ी रोकने का कहा। उसने वहीं पास ही रोक दी चित्रा गाड़ी से उतर गयी और कुछ आगे चल मैंने देखा गाड़ी अभी भी मेरे पीछे चली आ रही थी उसे देख कर मुझे ज्यादा सही नही लगा। मैं ये तो समझ गया कि गाड़ी अभी भी मेरे पीछे है लेकिन उसमे कौन है ये मुझे नही पता चला। मैंने हमेशा की तरह गाड़ी बीच तक पहुंचाई लेकिन आज मैंने बीच जाने के लिये दूसरा रास्ता चुना। ड्राइवर वहाँ से चला गया और मै मेरी हमसफर के पास चला आया। उससे मुलाकात कर मै अंधेरा घिरने के बाद ही वहाँ से निकल आया।


***


चित्रा, रविश और अर्पिता से एक ही बात का समझ आया मुझे इन सब से दूर ही रहना चाहिये उसके क्य समस्या है ये उसकी प्रॉबल्म है। उसने एक बार फिर बैग मेरे पास छोड़ा तो ये यून्ही नही होगा उसमे जरूर ही वही होगा जो मै नही चाहता था। खैर सच्चाई तो मै नही जानता था। लेकिन बेवजह मुसीबत मोल लेने का विचार छोड़ दिया जो होना होगा वो ठाकुर जी के हाथो मे ही छोड़ दिया और एक बार फिर अपनी दुनिया मे मस्त हो गया।


***


आज कई दिनो बाद एक बार फिर कुछ अच्छी बुरी घटनाये मेरे साथ घटी। आज कई दिनो बाद दिशा से मुलाकात हुई। दिशा ने मुझे बताया वो लोग कई दिनो से मेरे घर के आसपास ही दिखते है लेकिन वे समझ ही नही पा रहे हैं मेरा घर कौन सा है। समझना इतना आसान भी तो नही है शान के लिये तो उसकी अर्पिता ही हर जगह रहती है घर का नाम भी अर्पिता के नाम से रखा था और रजिस्ट्री मेरी प्रिंसेस के नाम से कराई थी। जिसके नाम के बारे मे शायद ही किसी को खबर थी। तानी नाम तो शायद ही किसी ने लिया था। घर पर सब उन्हे प्रिंसेस और गुड़िया ही कहते थे बचपन से। खैर मैं ये समझ गया था शान नाम अस्तित्व मे है लेकिन उसकी पहचान सिर्फ नाम से ही है। छलावा के अलावा वह और कुछ नही, कुछ भी नहीं। दिशा से मुझे ये भी पता चला मेरा पीछा करने वाला रॉनी था वह थक गया मुझे ढूंढते ढूंढते लेकिन नही पता कर पाया शान कौन है। इसीलिये ये काम अब युग को दिया गया है। युग जो अब तक लखनऊ मे रहकर ही इस बात को देख रहा था वह आजकल मुम्बई आ गया है बेसब्री से शान से मुलाकात के इंतजाम देख रहा है। दिशा को सुन मेरे मन मे यही सवाल आया मेरे पोस्टर्स तो इतने जगह लगे हुए हैं तो क्या अभी तक मिस्टर अभिनव ने मुझे पहचाना नही। हालांकि मै पॉस्टर्स बहुत ज्यादा कम यूज करता था। लेकिन सोचने वाली बात ये थी जब अभिनव जेल मे रहकर सूजी को मेरे पीछे लगा सकता है तो क्या उसके पास मेरी एक भी तस्वीर नही होगी। जबकि वो अच्छे से जानता था कि प्रशांत ही शान है मेरी अर्पिता मुझे इस बात से बुलाती थी। इतनी उलझने थी न मन मे कुछ समझ ही नही आता था आखिर क्यूं रह रह कर ये समस्याये मेरे सामने आ जाती थी सिर उठाकर। अभिनव जयेश का किरदार मुझे वाकई हैरान कर रहा था। ये लोग मेरी हकीकत जानते थे लेकिन फिर भी शांत थे, इसका एक ही रीजन मुझे समझ आता था इनमे से किसी को नही पता था कि प्रशांत मुम्बई मे रहता कहाँ है। एक बार पता चला तो मैंने फ्लैट बदल लिया था। जो भी है अब बस एक ही ख्याल आता है देखा जायेगा आगे? दिशा चली गयी और मै मेरे बच्चो के साथ मुस्कुराते हुए जीने लगा।


***


आज सुबह सुबह ही आनंद जी का फोन आ गया मेरे पास। उनकी अवाज थोड़ी परेशान लग रही थी वजह पूछने पर पता चला आज उनकी फमिली मे थोड़ी इश्यू है उन्हे उसके लिये शिमला जाना है। लेकिन समस्या ये है कि आज की रिकॉर्डिग भी इम्पॉरटेंट है उसे नही मिस कर सकते। मैंने खुद से हैंडल करने का कहा तो उन्होने मुस्कुराते हुए फोन रख दिया। मुझे थोड़ा जल्दी जाना था इसीलिये सारे काम जल्दी जल्दी किये और वहाँ से निकल गया। ऑफिस पहुंच कर सारे काम सम्हाले काफी देर तक गिटार प्ले किया। अर्पिता से बात करने का मन हुआ तो उसे आवाज लगा दी। हमेशा की तरह वह चली आई और हमारी बाते एक बार फिर शुरू हो गयीं। सबके बारे मे बात करने के बाद उसने मुस्कान के बारे मे पूछा। मैंने बताया जासूस आ चुका है और समीरा को जॉब मिल चुकी थी लेकिन मै मेरी बच्ची की रिस्पोंसिबिलिटी अभी भी उठाता हूं। वह मुस्कुरा दी, “जानते हैं हम” उसने कहा और बच्चो के बारे मे पूछते हुए उसने एक बार फिर मुझसे वापस बांदा जाने के लिये पूछा। उसके अचानक बांदा वापस आने के बारे मे पूछना मुझे समझ नही आया मैंने सवालिया नजरो से उसकी ओर देखा तो गम्भीरता से कहने लगी, “हमे लगता है अब आपको वापस अपनो के बीच लौटना चाहिये चीजे बहुत उलझ रही हैं शान! जिस मकसद के लिये आप शान बने थे वह पूरा हो चुका है अब हमे बांदा निकलना चाहिये। जानते हैं न आप, उलझी हुई चीजे अस्तित्व मिटा कर रख देती हैं। समझ आया दिशा की बातो ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया था। मैंने कहा, “बस कुछ जिम्मेदारियां है अर्पिता सिर पर अगर इन्हे नही निपटाया तो जिन्होने बुरे वक्त मे हमारी मदद की थी उनका बहुत नुकसान होगा।” वह मुस्कुरा दी और मै एक बार फिर उसकी मुस्कुराहट मे खुद को भूल गया।


***


लगातार दो दिन तक ऑफिस और घर मैनेज करने के बाद फाइनली आनंद जी आ गए। उनके आने से मन को काफी राहत मिली। लेकिन ये खुशी बस दोपहर भर की थी। क्योंकि दोपहर बाद मेरे पास दिशा का फोन आया। वह काफी घबराई हुई थी। उसकी घबराहट मुझे सामान्य नही लगी। मेरा अनुभव कह रहा था वह काफि सहमी सी थी जैसे उसे कुछ ऐसा पता हो जो हमारे लिए सामान्य नही हो। वह मेरा भला चाहती थी ये एहसास तो मुझे हो गया था। उसने कहा मुझसे, "प्रशांत, शहर छोड़ दो तुम, आखिर कितना बचोगे तुम इन लोगो की नजरों से, सूजी ने  आनंद जी के ऑफिस का पता युग को दिया। युग ने रॉनी के साथ मिलकर जगह डिवाइड की और जयेश की मदद से तुम्हारी यानी शान की पहचान की। अब उन सबको ये पता चल चुका है शान ही प्रशांत है और मिस्टर तलवार का पुराना बिजनिस राइवल। तुम्हारे पास जयेश और मिस्टर तलवार की बर्बादी के कई साक्ष्य हैं। इसीलिए अब वे तुमसे हाथ नही मिलाना चाहते बस तुम्हारे अस्तित्व को खत्म करना चाहते हैं। ऐसा करने की सबके पास वजह है।  "  जानता ये दिन कभी न कभी आएगा, लेकिन इतना जल्द आएगा ये एहसास नही था। मैंने कहा, " मैं नही जा सकता दिशा, कुछ चीजे पूरी करना बाकी है। चला गया तो आनंद जी के साथ साथ और कॉन्ट्रैक्ट मुश्किल में आ जाएंगे। मुझ पर लीगल कार्यवाही भी हो सकती है। मैं देखता हूँ खुद से कुछ, निकालता हूँ कोई न कोई रास्ता।" मैंने फोन रखा और सब को परे करते हुए काम फिनिश करने लगा। शाम को अर्पिता से मिलने का समय हुआ तो हमेशा की तरह बीच पर जाने के लिए निकल गया।

आज अर्पिता थोड़ी परेशान थी। समझ गया वह दिशा की बातें समझ चुकी थी। उसकी आंखें भरी थी आज बहुत मजबूर महसूस कर रहे थे हम। एक दूसरे के साथ होकर भी एक दूसरे के आंसू नही पोंछ पा रहे थे। वह चाहती थी मेरे कंधे का सहारा जो मैं चाहकर भी नही दे पा रहा था। आज बरसो बाद मुझे मेरे हाथों के खालीपन ने बुरी तरह कचोटा। उसके हाथों को थाम कर कभी लगा ही नही मैं अकेला हूँ आज महसूस हो रहा था अकेलापन क्या चीज थी। हमारे बीच की दूरियां कितनी ज्यादा थीं। न जाने क्यों आज खलिश बहुत महसूस हुई रूह को। कुछ देर बाद जब हम दोनों हो सामान्य हुए तब जाकर उसने बातचीत करना शुरू की। छूटते ही सबसे पहले बोली, "शान, अब कोई रास्ता निकाल लो और यहां से चलो बहुत रह लिए आप सबसे अलग अब बस सबके बीच चलो। कहीं देर न हो जाये अब।" मजबूरी तुम जानती हो अर्पिता कैसे जा सकता हूँ यहां से।"
कहने लगी, "लेकिन शान ये मजबूरी हमारे बच्चों के लिए मुश्किलें खड़ी कर देगी, मां पापा को एक बार फिर तकलीफ़ देगी, छोड़ दीजिए सब चलिए वापस बांदा।"

समझ आ गया वो काफी घबरा गई थी दिशा को सुन। मैंने कहा, "बच्चो की फिक्र मत करो अप्पू, इन्हें मै सम्हाल लूंगा बस तुम फिक्र मत करो अब। जो होना होगा वो होकर ही रहेगा।"

वह कुछ देर सोच में डूब गई फिर अचानक से बोल पड़ी, "लेकिन ये सूजी ने ऐसा किया क्यों? और जयेश राजवंशी को आप अब भी हैंडल कर सकते हैं। मुस्कान हमारे पास है उसकी सबसे बड़ी कमजोरी। लेकिन मिस्टर तलवार उसका कुछ तोड़ निकालना जरुरी है।" उसे सुन समझ आया उसकी फिक्र मिस्टर तलवार को लेकर थी। हमारे हाथ मे जितना था हमने किया। उसे समझाया। आने का मन नही था लेकिन बच्चो के लिए वहां से वापस चला आया।

जारी


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3 Comments

PHOENIX

25-Mar-2022 05:36 PM

Climax starts now

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Arman

28-Feb-2022 10:49 AM

Behtarin

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Kiran Tawri

27-Feb-2022 10:53 PM

Behtrarin part.. pata nhi shan k kitne dusman h jo khatam hi nhi ho rhe...jyada naam kamaana bhi khatra ho jata h ... pata nhi kitna Dard taklif likhi thi thakur ji ne inki kismat m...

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